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Wednesday, July 28, 2010

{ Poem } मैं तुम्हें लैला बना दूँगा

मैं हूँ एक इश्क का क़तरा तुम्हें दरिया बना दूँगा
तेरा मज्नूँ अगर हूँ मैं तुम्हें लैला बना दूँगा ।




बदन शोला,अदा शबनम, हसीं गुल हो नज़र हो तुम
मेरी रातों ने सोचा जिसको अकसर वो सेहर हो तुम ।




नज़ाकत फूल की पाई बड़ी नाज़ुक कली हो तुम
जहाँ परवाज़ करता है वो तसव्वुर नगर हो तुम ।




हवाओं में कहो तो ख़्वाब का चेहरा बना दूँगा
तेरा मज्नूँ अगर हूँ मैं तुम्हें लैला बना दूँगा ।




तुम्हारी आँख से जानां नशे के घूंट पीने हैं
बहुत गहरे जुदाई के अभी तो ज़ख़्म सीने हैं ।




तुम्हारी दीद की लड़ियाँ हसीं घड़ियाँ मिले हमको
तेरी ज़ुल्फ़ों के साए में अमर लम्हें भी जीने है ।




मुहब्बत की कहानी को नया किस्सा बना दूँगा
तेरा मज्नूँ अगर हूँ मैं तुम्हें लैला बना दूँगा

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